पाचन तंत्र के प्रमुख अंग - major organs of the digestive system

पाचन संस्थान में निम्नलिखित अंग अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। 


मुख (Mouth) मुँह पाचन तन्त्र का प्रमुख अंग है। मुँह को दो भागो में विभक्त किया जाता है पहला भाग मुख गुहा (Buccal Cavity) जो बाह्य रूप से होठ गाल तथा अन्दर से दाँत तथा मसूड़ो में विभक्त रहता है। दूसरा भाग दॉत व मसूड़ो से पीछे की ओर ग्रसनी में खुलता है। मुँह का भीतरी भाग श्लेष्मिक झिल्लियों द्वारा निर्मित है। ये भी त्वचा जैसी होती है, तथा इसका रंग लाली लिए रहता है। इसमें रसस्स्रावी ग्रन्थियाँ (Secreting glands) होती हैं और इसमें पास आने वाले पदार्थ का शोषण करने की क्षमता भी रहती है। जीभ, तालुमूल, तालु तथा दाँत ये सब मुख के भीतर ही रहने वाले अवयव हैं।


 ग्रसनी (Pharynx) मुख गुहा पश्चभाग की और जहाँ खुलती है उस भाग को ग्रसनी कहते है । ग्रसनी से श्वास तथा पाचन संस्थान का मार्ग शुरू होता है। श्वास प्रणाली के मार्ग को (Trachea ) तथा पाचन संस्थान के मार्ग को ग्रासनली (Oesophagus) कहते है। प्रिय पाठको ध्यान रहे हम जो भी भोजन को चबाते है वह ग्रसनी के द्वारा ही ग्रासनली मे पहुँचता है। इसकी लम्बाई 4 से 6 इंच तक होती है। ग्रसनी के मुख्य रूप से जीन विभाग होते हैं।



ग्रसनी के बीच का अस्तर तन्तुमय ऊतक तथा वाह्य अस्तर पेशीय होता है जिसे संकुचन पेशियों कहते है।


 ग्रासनली (Oesophagus ) जिन नली के द्वारा भोजन अमाशय में पहुँचता है. उसे अन्न प्रणाली अथवा अन्न मार्ग ( Alimentary canal) कहते हैं। ग्रासनली सर्वाइकल क्षेत्र के 6 वें कशेरूक से शुरू होती है और नीचे की ओर होती हुई थोरेसिक क्षेत्र के 10 वें कशेरूक तक होती है। ग्रासनली की भित्ति की निम्न परतें होती है।


- श्लेष्मिक कला (Mucosa )


- अवश्लेष्मिक परत (Submucosa )


पेशीय परत (Muscularis Externa) ग्रासनली गले (pharynx) से आरम्भ होती है। इसके नीचे की गलनली अथवा ग्रासनली (Gullet) है, जो लगभग 10-15 इंच तक लंबी होती है तथा भोजन को मुँह से आमाशय तक पहुँचाने का कार्य करती है। इसमें कोई हड्डी नही होती। यह मांशपेशियाँ तथा झिल्लियों से बनी होती है।


आमाशय (Stomuch) यह नाशपती के आकार का एक खोखली थैली जैसा अवयव है जो बांई ओर के उदर गहनर के ऊपरी भाग में तथा उदर वक्ष (महाप्राचीरा) के ठीक नीचे की ओर स्थित है। हृत्पिण्ड इसी पर स्थित है। यह गलनली के द्वारा मुँह से संबधित रहता है।


आमाशय पाचन संस्थान का सबसे चौड़ा भाग है इसका एक भाग ग्रासनली तथा एक भाग छोटी आँत के पहले भाग ग्रहणी पर खुलता है। आमाशय को पाकस्थली भी की जाता है। पाकस्थली का भीतरी भाग श्लैष्मिक झिल्ली से भरा रहता है। जब पेट खाली होता है, तब इसकी श्लैष्मिक झिल्ली की तह जैसी बन जाती है। श्लैष्मिक झिल्ली का अधिकाश भाग पाकस्थली के भीतरी भाग को तर बनाये रखने के लिए श्लैष्मिक स्त्राव करता है, जिससे कितने ही भागो में रसस्त्रावी ग्रन्थियाँ भर जाती हैं। इन ग्रन्थियों से पेप्सिन तथा हाइड्रोक्लोरिक एसिड के स्त्राव होते हैं। इन ग्रन्थियों को पेप्सिन ग्रंथियों कहा जाता है। पानी तथा नमक पर आमाशयिक यस की कोई क्रिया नही पाती पाकस्थली के जीन स्तर होते है। इसका बाहरी तथा ऊपर वाला स्तर उदरक (Perotoneum or Serous Coat) कहा जाता है। इसे पाकस्थली का एक ढक्कन कहना अधिक उपयुक्त रहेगा। यह स्तर एक प्रकार की रस -स्रावी झिल्ली है जो उदर प्राचीर (Abdominal Wall) के भीतरी ओर रहती है। पाकस्थली का मध्यस्तर (Middle or Muscular portion ) मॉसपेशी द्वारा निर्मित होता है। खाये हुए पदार्थ के मांशपेशी मे पहुँचते ही इसकी सब पेशियाँ एक-के-बाद-एक संकुचित होने लगती हैं, जिसके कारण लहरें भी उठकर पाकस्थली की एक छोर से दूसरी छोर तक हिलाती हैं। इस क्रिया के कारण खाया हुआ पदार्थ चूर-चूर होकर लेई जैसा रूप ग्रहण कर लेता है।

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पाकस्थली का अन्तिम तीसरा स्तर (Mucous Coat) मधुमक्खी के छत्ते जैसा होता है। इसमें श्लैष्मिक झिल्ली के बहुत से छोटे- छोटे छिद्र रहते हैं। इस झिल्ली की ग्रन्थियाँ में उत्तेजना होते रस स्राव होने लगता है। ये ग्रन्थियाँ दानेदार सी होती हैं। इन्हें लसिका ग्रंथियों कहा जाता है। आमाशय 24 घंटे में लगभग 5-6 लीटर रस निकालता है। इसमें भोजन प्रायः 4 घंटे तक रहता है तथा इसके लगभग 1.5 किलोग्राम भोजन समा सकता है। परन्तु कई लोगों में इसकी क्षमता बहुत अधिक पायी जाती है।



छोटी आँत (Small Intestine) छोटी ऑत लगभग 6-7 मीटर लम्बी बड़ी ऑत से ढकी रहती है। छोटी आँत के तीन विभाग होते है।


ग्रहणी (Duodenum)


शेषान्त्र (Illeum)


मध्यान्त्र (Jejunum) को तीन दिशाओं में लपेटे रहता हैं यह लगभग 19 इंच लम्बा तथा आकार में घोड़े की नाल अथवा अंग्रेजी के (C) अक्षर जैसा होता है। यह आमाशय के पाइलोरिक से आरंभ


(A) ग्रहणी ( Duodenum) आमाशय के पाइलोरिक छोर के आरम्भ होने वाले अंत के भाग को पक्वाशय कहते हैं। यह अर्द्ध-गोलाकार में मुड़ कर अग्नयाशय ग्रंथि के गोल सिर 

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होता है। इसका पहला भाग ऊपर दाई ओर पित्ताशय के कण्ठ तक जाता है तथा वहाँ से दूसरा भाग नाचे की ओर बढ़ता है।


पक्वाशय के भीतर पित्त वाहिनी तथा अग्न्याशय के मुँह एक ही स्थान पर खुलते है जिनसे निकले स्त्राव एक ही छिद्र द्वारा पक्वाशय में गिरते हैं। पक्वाशय का ऊपरी भाग पैरीटोनियम से ढका रहता है तथा अन्तिम भाग जेजूनम (Jajunum) से मिला रहता है। पक्वाशय में आमाशय से जो आहार रस आता है, उसके ऊपर पित्त रस (Bill juice ) तथा क्लोम रस (Pancreatic Juice) की क्रिया होती है। क्लोम रस पानी जैसा पतला. स्वच्छ, रंगहीन, स्वादरहित तथा क्षारीय प्रतिक्रिया वाला होता है। इसका आपेक्षित गुरुत्व लगभग 1.007 होता है। इसमें चार विशेष पाचक तत्व - ( 1 ) ट्रिप्सीन (Trypsin) (2) . एमिलौप्सीन (Amylopsin ) ( 3 ) स्टीप्सीन (Steapsin) तथा (4) दुग्ध परिवर्तक पाये जाते हैं। ये आहार रस पर अपनी क्रिया करके प्रोटीनों को पेप्टोन्स में श्वेतसार को वसा को ग्लीसरीन तथा अम्ल एवं दूध को दही में परिवर्तित कर देते हैं।


(A) जेजुनम (Jejunum). ग्रहणी को छोड़कर यह छोटी आँत का 2/5 भाग होता है लगभग 2.5 से 3 मीटर (लगभग 8-10 फीट ) लम्बा होता है। इस भाग पर छोटे छोटे रसांकुर होते है जो भोजन का अवशोषण करते है।


(B) जेजुनम इलियम (Illeum ) यह छोटी आँत का सबसे अन्तिम भाग है जो बड़ी आँत के प्रथम भाग (Ascending Colon ) से चिपका रहता है। यह लगभग 3 मीटर लम्बा होता हैं जो भाग बड़ी ऑत के शुरुवाद सीकम पर जुड़ता है वहाँ पर इलियोसीकम वालवद होते है जो संकुचित होते हुए भोज्य पदार्थो वापस आने से रोकता है।


6.4.6 बड़ी ऑत (Large Intesine). छोटी ऑत जहा समाप्त है, वहाँ से एक बड़ी ऑत आरंभ होती है। जिससे अन्न पुट (Intestinal Caccum) मिली होती है, से - निकलती है। यह छोटी आँत से अधिक चौड़ी तथा लगभग 5-6 फुट लंबी होती है। इसका अन्तिम डेढ़ अथवा 2 इंच का भाग ही मलद्वार अथवा गुदा कहा जाता है। गुदा के ऊपर वाले 4 इंच लम्बे भाग को मलाशय कहते हैं। यह बड़ी आँत छोटी आँत के चारों ओर घेरा डाले पड़ी रहती है। छोटी आँत की तरह ही बड़ी आँत में भी कृमिवत् आकुंचन होता रहता है। इस गति के कारण छोटी ऑत से आये हुए आहार रस (Chyme ) के जल भाग का शोषण होता है। छोटी ऑत से बचा हुआ आहार रस जब बड़ी आँत में आता है, तब उसमें 95 प्रतिशत जल रहता है। इसके अतिरिक्त कुछ भाग प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा का भी होता है। बड़ी आँत में इन सबका ऑक्सीकरण होता है तथा जल के बहुत बड़े भाग को सोख लिया जाता है। अनुमानतः 24 घण्टे में बड़ी आँत में 400 C.C. पानी का शोषण होता है। यहाँ से भोजन रस का जलीय भाग रक्त में चला जाता है तथा गाढ़ा भाग विजातीय द्रव्य के रूप में मलाशय में होता हुआ मलद्वार से बाहर निकल जाता है। पाठकों वस्तुतः बड़ी ऑत के निम्न सात भाग होते है।


. सीकम (Cascum )


आरोही कोलन (Ascending )


• अनुप्रस्थ कोलन (Transfer Colon )


• अवरोधी कोलन (Decending Colon )



सिग्मॉयड कोलन (Sigmoid)


• मलाशय (Rectum)


गुदा द्वार (Anus)

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6.4.7 मलाशय (Rectum). यह बड़ी आँत के सबसे नीचे थोड़ा फैला हुआ लगभग 12 से 18 से0 मी0 लम्बा होता है। इसकी पेशीय परत मोटी होती है। मलाशय के म्यूकोशा में शिराओं का एक जाल होता है जब ये फुल जाती है तो इनमें से रक्त निकलने लगता है जिसे अर्श या बवासीर कहा जाता है


6.4.8 गुदा (Anus). गुदा पाचन संस्थान अन्तिम भाग है। इसी भाग से मल का निष्कासन होता है। गुदीय नली श्लैषिक परत एक प्रकार के शल्की उपकला की बनी होती है जो ऊपर की ओर मलाशय की म्यूकोसा में विलीन हो जाती है।


अभ्यास प्रश्न


(1) क. छोटी आँत में कितने भाग होते है - (31) 2 (ब) अ (स) 5 (द) 2


ख. पक्वाशय को अन्य किस नाम से जाना जाता है।


(अ) आमाशय


(ब) ग्रहणी


(स) ग्रासनली (द) इनमें से कोई नहीं


ग. ग्रसनी के कितने भाग होते है


(31) 4 (ब) 2 (स) 6 (द) 3 घ. भोजन का पाचन कहाँ खत्म होता है।


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(अ) आमाशय


(ब) ग्रहणी


(स) इलियम


(द) जेजुनम