हृदय की गतिशीलता एवं हृदय स्पंदन - heart rate and heartbeat
हृदय की गतिशीलता एवं हृदय स्पंदन - heart rate and heartbeat
प्रिय पाठकों एक स्वस्थ मनुष्य का हृदय 72 से 75 बार मिनट धड़कता है। हृदय के स्पन्दन की यह गति कम भी हो सकती है और अधिक भी। हर एक सपन्दन के साथ सर्वप्रथम दोनों एट्रियम का और उसके बाद दोनों वेन्ट्रिकल्स संकुचन होता है। संकुचन के बाद दोनों एक साथ शिथिल होते है। हृदय में यह स्पन्दन आधीवन निरन्तर चलता ही रहता है। हृदय के कार्य करते समय जैसे ही दोनों वेन्ट्रिकल्स में संकुचन होता है, वैसे ही हृदय का एपेक्स छाती की दीवार से टकराता है। इससे इसकी ध्वनि उत्पन्न होती है। उसी से हम हृदय की धड़कन या स्पन्दन के रूप में सुनते तथा अनुभव करते है।
बड़ो की तुलना में बच्चों में हृदय के स्पन्दन की गति अधिक तीव्र होती है। हृदय के स्पन्दन की गति को अनेक कारक प्रभावित करते है। जैसे कि व्यक्ति की आय उसकी शारिरिक एवं मानसिक स्थिती इत्यादि जैसे-जैसे व्यक्ति की आयु बढ़ती है वैसे-वैसे उसके हृदय के स्पन्दन की गति क्रमशः कम होती जाती है। तीव्र संवेग जैसे कोध अत्यधिक खुशी इत्यादि में हृदय की धड़कन अत्यधिक तेज हो जाती है। हृदय की मॉशपेशियों के संकुचन की प्रक्रिया को सिस्टोल तथा इनके शिपिल होने को डायस्टोल कहते हैं। सिस्टोल तथा डायस्टोल दोनों ही 0.4 तथा 0.4 सेकण्ड का समय लेती है। इन दोनों के मिलने से 0.8 सेकण्ड मे एक हृदय चक्र पूरा होता है। सिस्टोल तथा डायस्टोल दोनों के मिलने से ही रक्तचाप की क्रिया होती है।
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