महाधमनी ( Aorta ) तथा महाशिरा (Venacava) की कार्य प्रणाली - Functioning of Aorta and Venacava

महाधमनी ( Aorta ) तथा महाशिरा (Venacava) की कार्य प्रणाली - Functioning of Aorta and Venacava

बड़ी धमनी है। इसके द्वारा शुद्ध रक्त सम्पूर्ण शरीर में फैलता है। इसकी कार्य प्रणाली निम्नानुसार है यह सबसे यकृत के भीतर से जाकर हृत्पिण्ड के दायें ग्राहक कोष्ठ में खुलने वाली 'अघोगा महाशिरा' (Inferior Venacava) में शरीर के संपूर्ण निम्न भाग के अंगों का रक्त एकत्र होकर ऊपर को जाता है। शरीर के सभी भागों से अशुद्ध रक्त उर्ध्व महाशिरा ( Superior Venacava) में आता है। यह महाशिरा उस रक्त को हृदय के दायें ग्राहक कोष्ठ को दे देती है। रक्त से भरते ही वह कोष्ठ सिकुड़ने लगता है तथा एक दबाव के साथ उसे दायें क्षेपक कोष्ठ में फेंक देता है

दायां त्रिकपाट (Tricuspid Valve) इसके बाद ही बन्द हो जाता है और वह रक्त को पीछे नहीं जाने देता अर्थात् दायें क्षेपक कोष्ठ से दायें ग्राहक कोष्ठ में नहीं पहुँच सकता। फिर, ज्यों ही दायां क्षेपक कोष्ठ भरता है, त्यों ही वह रक्त को वृहद् पल्मोनरी धमनी द्वारा शुद्ध होने के लिए फेफड़ों में भेज देता है। फेफड़ों में शुद्ध हो जाने पर शुद्ध रक्त दायें तथा बायें फेफड़े द्वारा वृहद पल्मोनरी धमनी द्वारा दायें ग्राहक कोष्ठ में भेज दिया जाता है। इसके पश्चात् यह रक्त दायें ग्राहक कोष्ठ से दबाव के साथ बायें क्षेपक कोष्ठ में आता है, जिसे यहाँ स्थित एक द्वि-कपाट (Biscuspid valve ) उसको पीछे नहीं लौटने देता। फिर जब वह दायां क्षेपक कोष्ठ भरकर सिकुड़ने लगता है,

तब शुद्ध रक्त महाधमनी में चला जाता है और वहाँ से सम्पूर्ण शरीर में फैल जाता है। महाधमनी से अनेक छोटी-छोटी धमनियाँ तथा महाशिरा से अनेक छोटी-छोटी शिराएँ निकली होती हैं, जो निरंतर क्रमशः रक्त को ले जाने तथा लाने का कार्य करती हैं। रक्त का संचरण दो घेरों में होता है (1) छोटा घेरा तथा (2) बड़ा घेरा छोटा घेरा, हृदय, पल्मोनरी धमनी, फेफड़ों तथा पल्मोनरी के सिरे से मिलकर बनता है तथा बड़ा घेरा महाधमनी एवं शरीर भर की कोशिकाओं तथा ऊतकों से मिलकर तैयार हुआ है। ग्राहक कोष्ठों (Atrium) को 'अलिन्द तथा क्षेपक कोष्ठों (Ventricle) को निलय कहा जाता। जब अशुद्ध रक्त उर्ध्व तथा अधः महाशिरा द्वारा हृदय के दक्षिण अलिन्द में प्रविष्ट होता है तब वह धीरे-धीरे फैलना आरम्भ कर देता है तथा पूर्ण रूप से भर जाने पर सिकुड़ना शुरू करता है फलस्वरूप अलिन्द के भीतर के दबाव में वृद्धि होकर महाशिरा का मुख बन्द हो जाता है तथा त्रिकपाट खुलकर रक्त दक्षिण निलय में प्रविष्ट हो जाता है।

दक्षिण निलय भी भर जाने पर जब सिकुड़ना आरम्भ करता है तब द्विकपाट बन्द हो जाता है तथा पल्मोनरी धमनी कपाट (Pulmonary Valve) खुल जाता है। उस समय शुद्ध रक्त के दक्षिण निलय से निकल कर पल्मोनरी धमनी (Pulmonary Artery) द्वारा वाम अलिन्द में गिरता है। इस क्रिया को छोटे घेरे में रक्त संचरण (Circulation of Blood through Pulmonary circuit ) नाम दिया गया है।


पल्मोनरी धमनी द्वारा वाम अलिन्द में रक्त के भर जाने पर वह सिकुड़ना प्रारंभ कर देता है और उसके भीतर दबाव बढ़ जाता है, फलस्वरूप द्विकपर्दी कपाट खुलकर रक्त वाम निलय में पहुँच जाता है ।

वाम निलय के भर जाने पर वह भी सिकुड़ना प्रारंभ कर देता है, तब द्विकपर्दी कपाट बन्द हो जाता है तथा महाधमनी कपाट खुल जाता है, फलतः वह शुद्ध रक्त महाधमनी में पहुँच कर सम्पूर्ण शरीर में भ्रमण करने के लिए विभिन्न धमनियों तथा कोशिकाओं में जा पहुँचता है। इस प्रकार रक्त संपूर्ण शरीर में घूम कर शिराओं से होता हुआ अन्त में उर्ध्व महाशिरा तथा अधः महाशिरा से होकर दक्षिण अलिन्द में पहुँच जाता है। रक्त भ्रमण की इस क्रिया को बड़े घेरे का रक्त संचरण (Circulation of Blood through Larger Circuit) कहते हैं।